वो नेता जो 13 साल तक पीएम पद पर ठोकते रहे दावेदारी, पार्टी बदलकर ही पूरा हुआ सपना

Morarji Desai: नरेंद्र दामोदर दास मोदी ने शनिवार को देश के 20वें प्रधानमंत्री के तौर पर शपथ ली. उन्होंने लगातार तीसरी बार प्रधानमंत्री पद की शपथ ली है. इस तरह उन्होंने देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के तीन बार शपथ लेने के रिकॉर्ड की बराबरी कर ली. वहीं एक राजनेता ऐसे भी हुए जो 13 सालों तक प्रधानमंत्री बनने का इंतजार करते रहे. मोरारजी देसाई ने साल 1956 में राजनीति में कदम रखा और उसके बाद वह राज्य और केंद्र सरकार में कई महत्वपूर्ण पदों पर रहे. मार्च 1977 में आखिरकार प्रधानमंत्री पद ग्रहण करने से पहले उनके सामने दो बार ऐसे मौके आए जब वह देश के इस सर्वोच्च पद पर आसीन हो सकते थे, लेकिन हर बार किस्मत ने उनके साथ धोखा किया.

मोरारजी देसाई पहली बार उस समय प्रधानमंत्री पद के दावेदार थे, जब जवाहर लाल नेहरू का निधन हुआ था. नेहरू ने 15 अगस्त 1947 से 27 मई 1964 तक देश की बागडोर संभाली. नेहरू के आकस्मिक निधन के बाद मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री पद के दावेदार थे. हालांकि उस समय उन्हें सफलता नहीं मिली. उस समय लाल बहादुर शास्त्री को प्रधानमंत्री बनाया गया. लाल बहादुर शास्त्री का भी पद पर रहते हुए 11 जनवरी 1966 को निधन हो गया. तो एक बार फिर मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री पद के दावेदार बने, लेकिन उस समय इंदिरा गांधी ने बाजी मार ली.

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इंदिरा के खिलाफ मोरारजी ने ठोकी दावेदारी
लाल बहादुर शास्त्री के निधन के बाद जब प्रधानमंत्री चुनने की बारी आई तो कांग्रेस पार्टी में ज्यादातर दिग्गज इंदिरा गांधी के पक्ष में थे. लेकिन मोरारजी ने इंदिरा गांधी के सामने अपनी दावेदारी ठोक दी. नतीजतन पार्टी के संसदीय दल में चुनाव हुआ. शास्त्री के निधन के नौ दिनों बाद कांग्रेस के निर्वाचित सदस्यों ने पीएम चुनने के लिए मतदान किया. इस चुनाव में इंदिरा गांधी ने मोरारजी को 169 के मुकाबले 355 वोटों से हरा दिया. दोगुने वोटों से जीतने के बाद इंदिरा गांधी ने 24 जनवरी 1966 को प्रधानमंत्री पद की शपथ ली.

1969 में कांग्रेस ओ के पाले में चले गए
मोरारजी देसाई 1969 तक केंद्र सरकार में कैबिनेट मंत्री और आखिरी दो सालों तक इंदिरा गांधी के मंत्रिमंडल में उपप्रधान मंत्री पद पर रहे. साल 1969 में कांग्रेस पार्टी के भीतर विवाद बढ़ने लगा और वो दो धड़ों में बंट गई. कांग्रेस के बंटवारे के बाद मोरारजी देसाई इंदिरा गांधी के विरोधी पाले कांग्रेस ओ में चले गए. कई सालों तक मोरारजी विपक्ष में रहे. उन्होंने आठ साल तक राजनीतिक जीवन में काफी संघर्ष किया. इसी दौरान इंदिरा गांधी ने देश में इमरजेंसी लगाकर विपक्ष के ज्यादातर नेताओं को जेल में ठूंस दिया था. मोरारजी को भी 19 महीने तक जेल में गुजारने पड़े थे.

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1977 में मोरारजी बने प्रधानमंत्री
इंदिरा गांधी ने 1977 में इमरजेंसी हटाकर चुनावों की घोषणा की. इन चुनावों में गांधीवादी नेता जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में जनता पार्टी बनी, जिसमें 13 दल शामिल थे. जनता पार्टी ने चुनाव जीतकर देश की पहली गैरकांग्रेसी सरकार बनाई थी, जिसके प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई थे. इससे पहले वह लगातार प्रधानमंत्री पद के प्रमुख दावेदार के रूप में जाने जाते थे, लेकिन कोई दूसरा बाजी मार ले जाता था. 1977 में भी मोरारजी देसाई को जगजीवन राम और चौधरी चरण सिंह से चुनौती मिली. हालांकि उस चुनाव के बाद भी एक समय ऐसा लगने लगा था कि जगजीवन राम प्रधानमंत्री बन सकते हैं. लेकिन उसी समय जगजीवन राम के बेटे का एक सेक्स स्कैंडल सामने आया जिसकी वजह से उनकी दावेदारी रह गई. ऐसे में चरण सिंह ने मोरारजी देसाई का साथ दिया. हालांकि, चौधरी चरण से मतभेदों के चलते वह अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सके और उन्होंने इस्तीफा दे दिया. मोरारजी देसाई 24 मार्च 1977 से 28 जुलाई 1979 तक प्रधानमंत्री रहे. वादी नेता थे मोरारजी
मोरारजी देसाई प्रशासनिक नौकरी छोड़कर राजनीति में आए थे. हालांकि वह ऐसे नेता थे जिन्होंने जिंदगी भर कभी भी अपने सिद्वांतों से समझौता नहीं किया. उन्होंने राज्य मंत्रिमंडल के लेकर केंद्र सरकार तक अलग-अलग जिम्मेदारियों को निभाया. उनका जन्म 29 फरवरी 1895 बंबई प्रेसीडेंसी के भदैली में हुआ था. साल 1917 में वह बंबई की प्रांतीय सिविल सेवा में चुन लिए गए. 1927-28 में जब वह गोधरा (अभी का गुजरात) में डिप्टी कमिश्नर के रूप में तैनात थे, तभी वहां दंगे भड़क गए. इस घटना से क्षुब्ध होकर मोरारजी ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया. उन पर एक वर्ग का साथ देने का आरोप लगा था. इसके बाद वह स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े. इस दौरान वह कई बार जेल भी गए. जब देश आजाद हो गया तो साल 1952 में बंबई के मुख्यमंत्री बने.

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