Lok Sabha Chunav 2024: 2 जानी दुश्मनों के बीच बड़ी जंग, जीत का चौका लगा पाएंगे निशिकांत दुबे!

Godda Lok Sabha Election 2024: गोड्डा के सियासी मैदान में एक बार फिर 2 पुराने जानी दुश्मन बीजेपी उम्मीदवार निशिकांत दुबे और कांग्रेस उम्मीदवार प्रदीप यादव के बीच जोरदार जंग छिड़ी हुई है. पर निर्दलीय उम्मीदवार अभिषेक झा के मैदान में आने और AIMIM उम्मीदवार मोहम्मद मंसूर के मैदान से हटने से मुकाबला बेहद दिलचस्प हो गया है. गोड्डा के चौक-चौराहों पर चाय की चुस्कियों के बीच इन दिनों बस इसी बात पर चर्चा हो रही है कि क्या निशिकांत दुबे इस बार आसानी से जीत का चौका लगा लेंगे या फिर प्रदीप यादव अपने जानी दुश्मन को मात देने में सफल हो जाएंगे?

झारखंड की गोड्डा लोकसभा सीट को अब भारतीय जनता पार्टी- बीजेपी का गढ़ माना जाता है. इतिहास के पन्नों को पलटें तो पाएंगे कि यहां कभी कांग्रेस का राज हुआ करता था. लेकिन पिछले कुछ साल से कांग्रेस यहां हाशिए पर है. गोड्डा लोकसभा सीट पर सबसे ज्यादा 8 बार बीजेपी और 6 बार कांग्रेस ने जीत हासिल की है. आखिरी बार 20 साल पहले साल 2004 में कांग्रेस के टिकट पर फुरकान अंसारी यहां से सांसद बने थे. इसके बाद निशिकांत दुबे की इंट्री हुई और बीते लगातार 3 बार से वो यहां से सांसद हैं. निशिकांत पहले चुनाव में सिर्फ 6 हजार वोट के अंतर से जीते थे. पर दूसरे और तीसरे चुनाव में जीत का अंतर बढ़ गया. लेकिन उनका विजय रथ रोकने के लिए इस बार ‘इंडिया’ गठबंधन ने जबरदस्त घेराबंदी की है. उनके मुकाबले पहले महागामा की कांग्रेस विधायक दीपिका पांडेय सिंह को टिकट दिया गया. पर बाद में उनका नाम काट कर पोड़ैयाहाट के कांग्रेस विधायक प्रदीप यादव को उतारा गया.

प्रदीप यादव 2019 के लोकसभा चुनाव में भी निशिकांत दुबे के सामने थे. पर ठीक चुनाव के समय एक केस में उनका नाम आया और निशिकांत दुबे लगातार तीसरी बार करीब पौने 2 लाख वोट के बड़े अंतर से जीत गए थे. उस समय प्रदीप यादव यूपीए गठबंधन के उम्मीदवार थे. उन्हें झारखंडी मुक्ति मोर्चा-जेएमएम, कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल- RJD का समर्थन हासिल था. बीजेपी के मौजूदा प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी तब झारखंड विकास मोर्चा के प्रमुख के रूप में प्रदीप यादव के साथ थे. लेकिन इस बार बाबूलाल मरांडी बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष के रूप में प्रदीप यादव के विरोधी खेमे में हैं. 2019 में लोकसभा चुनाव के 6 माह बाद हुए विधानसभा चुनाव में गोड्डा लोकसभा की गोड्डा और देवघर सीट पर बीजेपी, महागामा और जरमुंडी पर कांग्रेस, मधुपुर पर झारखंड मुक्ति मोर्चा और पोड़ैयाहाट पर झारखंड विकास मोर्चा ने जीत हासिल की. बाद में पोड़ैयाहाट के जेवीएम विधायक प्रदीप यादव कांग्रेस में चले गए. यानी फिलहाल गोड्डा की 4 विधानसभा सीट पर इंडिया गठबंधन और 2 पर बीजेपी का कब्जा है.

गोड्डा में कौन किसके साथ?
गोड्डा लोकसभा सीट से टिकट के दावेदार पूर्व कांग्रेस सांसद फुरकान अंसारी को इस बार भी टिकट नहीं मिला. इससे फुरकान अंसारी और उनके विधायक बेटे इरफान अंसारी का खेमा नाराज दिखा. रही-सही कसर AIMIM उम्मीदवार मो. मंसूर के नामांकन ने पूरी कर दी. पर बाद में मंसूर ने नामांकन वापस ले लिया और फुरकान अंसारी और इरफान अंसारी भी प्रदीप यादव का साथ देने को राजी हो गए. तो अल्पसंख्यक वोट में सेंधमारी की संभावना खत्म हो गई. कांग्रेस को तो बड़ी राहत मिल गई.

उधर, एक खेमे की नाराजगी ने बीजेपी की राह में रोड़ा अटका दिया है. कहा जा रहा है कि पूर्व पार्टी विधायक राज पलिवार और कुछ वर्तमान विधायक बीजेपी उम्मीदवार निशिकांत दुबे से नाराज हैं. लंबे समय तक भाजपा में रहे और कमल के निशान पर साल 2000 में गोड्डा से सांसद बने प्रदीप यादव का अभी भी कई बीजेपी नेताओं से व्यक्तिगत संबंध है. निशिकांत दुबे से नाराज बीजेपी का ये खेमा प्रदीप यादव का साथ दे सकता है. वहीं पूर्व कांग्रेस उम्मीदवार दीपिका पांडेय सिंह समेत मंत्री हफीजुल हसन और पूर्व आरजेडी विधायक सुरेश पासवान भी उनके चुनाव अभियान में सहयोग करते दिख रहे हैं. मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन, JMM नेता कल्पना सोरेन और मंत्री बसंत सोरेन भी कई मंच पर दिखे हैं. कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, महासचिव प्रियका गांधी और बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव उनके लिए चुनाव प्रचार कर चुके हैं. विपक्षी नेताओं की ये एकजुटता प्रदीप यादव का सबसे बड़ा सहारा है.

वोटों का गणित
2009 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी उम्मीदवार निशिकांत दुबे ने कांग्रेस उम्मीदवार फुरकान अंसारी को हरा कर कांग्रेस से गोड्डा सीट छीनी थी. 2014 में भी उन्होंने लगातार दूसरी बार फुरकान अंसारी को हराया था. उस समय बीजेपी को 36.26 प्रतिशत, दूसरे नंबर पर कांग्रेस को 30.48 प्रतिशत और तीसरे नंबर पर JVM उम्मीदवार प्रदीप यादव को 18.44 प्रतिशत वोट मिले थे. जबकि 2019 के लोकसभा चुनाव में विपक्ष के संयुक्त उम्मीदवार के रूप में प्रदीप यादव 37.97 प्रतिशत वोट ही ला सके थे. वहीं बीजेपी उम्मीदवार निशिकांत दुबे 53.40 प्रतिशत वोट लाकर जीत गए. इसके साथ ही प्रदीप यादव को गोड्डा में चौथी बार मात खानी पड़ी. जबकि निशिकांत दुबे ने जीत की हैट्रिक लगाई.

इस बार उनके पक्ष में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा और गृह मंत्री अमित शाह से लेकर कई स्टार प्रचारक चुनाव प्रचार कर चुके हैं. मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा जैसे नेताओं ने भी चुनावी सभा की है. भोजपुरी स्टार और सांसद दिनेश लाल यादव निरहुआ और अभिनेत्री आम्रपाली दुबे के रोड शो में भी भीड़ उमड़ी. खुद निशिकांत दुबे गांव-गांव में जनसंपर्क कर रहे हैं और गोड्डा में ट्रेन और देवघर में एयरपोर्ट, सॉफ्टवेयर टेक्नोलॉजी पार्क और एम्स जैसे तोहफों के नाम पर वोट मांग रहे हैं.

निर्दलीय उम्मीदवार ने लगाया दम
बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री विनोदानंद झा के पोते अभिषेक झा ने नामांकन के आखिरी दिन गोड्डा से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में पर्चा भरा. अभिषेक झा और उनके परिवार का गोड्डा की राजनीति में बड़ा दखल रहा है. देवघर के पंडा समाज में उनकी अच्छी खासी पकड़ है. वो बीजेपी उम्मीदवार के रूप में 2009 में मधुपुर से विधानसभा चुनाव लड़ चुके हैं. उन्हें राज परिवार का टिकट काट कर उम्मीदवार बनाया गया था. उस समय इस बात की चर्चा थी कि अभिषेक झा को टिकट दिलाने में निशिकांत दुबे ने मदद की थी. लेकिन इस बार उन्होंने निर्दलीय उम्मीदवार बन कर निशिकांत दुबे के लिए बड़ी चुनौती खड़ी कर दी है. इसके साथ ही निशिकांत दुबे के परंपरागत ब्राह्मण वोट बैंक में सेंधमारी की आशंका बढ़ गई है.

गोड्डा की बाजी किसके हाथ?
गोड्डा में इस बार जातीय राजनीति का असली दम दिखेगा. गोड्डा लोकसभा झारखंड की इकलौता ऐसी सीट है, जहां ब्राह्मण वोटर निर्णायक भूमिका में होते हैं. उनके साथ दूसरी सवर्ण जातियां आ जाएं, तो किसी को भी जीत या हार दिला सकती हैं. गोड्डा से चौथी बार किस्मत आजमा रहे बीजेपी उम्मीदवार निशिकांत दुबे इन दोनों जातियों की गोलबंदी से इस बार भी जीत की रणनीति बना रहे हैं. पर इस समीकरण के उलट अगर गैर ब्राह्मण और मुस्लिम वोटर एकजुट हो जाएं, तो ये लड़ाई रोमांचक हो सकती है. कांग्रेस नेता फुरकान अंसारी साल 2004 में इसी समीकरण के बल पर सांसद चुने गए थे. इस बार प्रदीप यादव इसी समीकरण के जरिए जीत की राह तलाश रहे हैं. गोड्डा के मैदान में इस बार कुल मिला कर 19 उम्मीदवार किस्मत आजमा रहे हैं और उनकी किस्मत का फैसला करीब 20 लाख मतदाताओं के हाथ में है.

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