अब ज्यादातर जगहों पर क्यों होने लगी है मूसलाधार बारिश, जिससे हो जाती है त्राहि-त्राहि

Why is it Raining So Much: देश के ज्यादातर राज्यों में इन दिनों भारी बारिश देखने को मिल रही है. मौसम विभाग ने 21 से 24 अगस्त के बीच नागालैंड, मणिपुर, मिजोरम और त्रिपुरा में भारी बारिश की चेतावनी दी है. वहीं, असम, मेघालय और केरल में भी मूसलाधार बारिश का अनुमान जताया गया. पिछले एक पखवाड़े में देश के कम से कम 80 फीसदी हिस्से में व्यापक वर्षा हुई. जिसमें असम, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, गुजरात, तटीय महाराष्ट्र और कर्नाटक, केरल और लक्षद्वीप में भारी से बहुत भारी बारिश हुई. इस सीजन में पहली बार दक्षिण-पश्चिम मानसून भारत के बड़े भौगोलिक क्षेत्र में सक्रिय है. जिसकी वजह से भारी बारिश का ये ट्रेंड देखने को मिल रहा हैक्या है भारी बारिश की वजह

जून के मध्य में नरम रहने के बाद, दक्षिण-पश्चिम मानसून को जून के अंत में अपेक्षित गति मिली. मानसून अपने सामान्य समय से छह दिन पहले 2 जुलाई को पूरे देश में पहुंच गया. दिल्ली, पंजाब, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान और जम्मू-कश्मीर में जुलाई की शुरुआत में बारिश हुई. हालांकि, जुलाई महीने की शुरुआत से, कई अनुकूल मौसम प्रणालियां रही हैं. जिन्होंने सदर्न पैनिनसुला, पूर्व, उत्तर-पूर्व और मध्य भारत क्षेत्रों में मानसून को या तो सक्रिय या जोरदार (वर्षा की घटनाओं के संबंध में) बनाए रखा है.

 

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बढ़ी हुई वर्षा में दो मुख्य योगदानकर्ता रहे हैं. एक तो अरब सागर से नमी भरी तेज पछुआ हवाओं का लगातार आना. दूसरी है मानसून आने की स्थिति. मानसून के मौसम के दौरान पाकिस्तान और बंगाल की खाड़ी के बीच फैला एक अर्ध-स्थायी, कम दबाव वाला क्षेत्र – जो आमतौर पर मौसम के भीतर उत्तर और दक्षिण के बीच घूमता रहता है. जब भी यह दक्षिण की ओर बढ़ता है, जैसा कि वर्तमान मामले में हुआ है, मध्य, पूर्वी और प्रायद्वीपीय भारत में अधिक वर्षा हो सकती है. जब यह उत्तर की ओर स्थानांतरित होता है, तो हिमालय की तलहटी में अधिक वर्षा होने की संभावना होती है, लेकिन शेष भारत में वर्षा में गिरावट देखी जाती है.

 

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बढ़ रही हैं बादल फटने की घटनाएं

दिल्ली और इसके आसपास के राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) में अगस्त महीने में लगातार भारी बारिश का रौद्र रूप देखने को मिला है. 31 जुलाई को तो भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के अनुसार केवल एक घंटे में 100 मिलीमीटर से अधिक बारिश हुई. जिसके कारण आईएमडी को रेड अलर्ट जारी करना पड़ा. इस प्रकार की अत्यधिक वर्षा, जिसे अक्सर बादल फटना कहा जाता है, के परिणामस्वरूप हुई. अगले हफ्ते भी भारत के विभिन्न हिस्सों में तेज बारिश होने की उम्मीद जताई गई है. फिर होती है जलभराव की समस्‍या

भारी बारिश के कारण कई राज्‍यों में सामान्‍य जनजीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है. दिल्ली और एनसीआर तो इस मामले में खासे बदनाम है. जब थोड़ी देर में बहुत ज्यादा बारिश होती है तो दिल्ली, नोएडा, गाजियाबाद और गुरुग्राम की सड़कें पानी में डूब जाती हैं. जगह-जगह जलभराव के कारण सड़कों पर लंबा जाम लग रहा है. वाहन चालकों को कई-कई घंटे सड़क पर बिताने पड़ते हैं. क्‍या आपने कभी सोचा है कि बारिश मामूली हो या भारी, जलभराव की स्थिति कैसे बन जाती है? बता दें कि ज्‍यादातर बड़े शहरों में बेहतरीन सीवेज सिस्‍टम्‍स बनाए गए हैं. फिर कैसे सड़कें पानी में डूब जाती हैं. इसका सबसे पहला कारण जलनिकासी की कमजोर व्यवस्था है.

 

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ड्रेनेज सिस्‍टम नहीं संभाल पा रहा बोझ

ज्‍यादातर शहरों में सीवेज सिस्‍टम पर करोड़ों रुपये का खर्चा किया जाता है. हर बारिश में शासन-प्रशासन दावा करते हैं कि लोगों को जलभराव का सामना नहीं करना पड़ेगा. हालांकि, जलनिकासी की बेहद कमजोर व्‍यवस्‍था के कारण सारे दावे पानी में डूब जाते हैं. दरअसल, बिना स्‍टैंडर्ड्स और स्ट्रक्चरल नॉलेज के मनमुताबिक जल निकासी की सुविधा देने के कारण जलभराव के हालात बनते हैं. कई बार शुरुआत में जलनिकासी सुविधा काम करती है, लेकिन लंबे समय में ये पूरी तरह से नाकाम साबित हो जाती है. विशेषज्ञों का कहना है कि पुराने शहरों में नई इमारतें बन रहीं हैं, लेकिन ड्रेनेज सिस्‍टम पर काम नहीं होता है. इससे बचना है तो शहर की आबादी, रिहायशी इलाकों और अगले 100 साल के अनुमान के मुताबिक ड्रेनेज सिस्टम बनना चाहिए.

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