पंडित दीनदयाल उपाध्याय शेखावाटी विश्वविद्यालय का चतुर्थ दीक्षांत समारोह आयोजित

पंडित दीनदयाल उपाध्याय शेखावाटी विश्वविद्यालय का चतुर्थ दीक्षांत समारोह आयोजित

 

विश्वविद्यालय में अर्जित ज्ञान का व्यावहारिक उपयोग राष्ट्र और समाज के हित में करें – राज्यपाल मिश्र

 

सीकर, 4 जुलाई। पंडित दीनदयाल उपाध्याय शेखावाटी विश्वविद्यालय का चतुर्थ दीक्षांत समारोह गुरुवार को राज्यपाल राजस्थान एवं विश्वविद्यालय के कुलाधिपति कलराज मिश्र की अध्यक्षता में आयोजित हुआ। कुलाधिपति मिश्र द्वारा कुल 72 विद्यार्थियों को गोल्ड मेडल से नवाजा गया साथ ही कला संकाय के 82672, विज्ञान संकाय के 40376, वाणिज्य संकाय  के 10578, समाज विज्ञान संकाय के 29785, शिक्षा संकाय के 36448 एवं विधि संकाय के 1713 स्नातक एवं स्नातकोत्तर दीक्षार्थियों को उपाधि प्रदान की गई।

 

समारोह में राज्यपाल मिश्र द्वारा शेखावाटी यूनिवर्सिटी के अंतर्गत आने वाले 370 कॉलेजों के 202572 स्टूडेंट्स की उपाधि जारी की गई। कार्यक्रम का शुभारंभ राष्ट्रगान से किया गया। इसके बाद अतिथियों ने द्वीप प्रज्वलित कर सरस्वती वंदना और विश्वविद्यालय कुलगीत गाया। राज्यपाल ने स्टूडेंट को संविधान की उद्देशिका व संविधान के मूल कर्तव्यों की शपथ दिलाई।

 

इस दौरान राज्यपाल कलराज मिश्र ने अपने संबोधन में कहा कि आज महिलाएं सभी क्षेत्रों में आगे बढ़कर अपना नाम कमा रही है जो की भारत के लिए एक सुखद भविष्य की तस्वीर है। उन्होंने कहा कि आज का दिन बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि यहां से शिक्षा प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों के लिए जीवन का एक नया अध्याय प्रारंभ हो रहा है। दीक्षांत विद्यार्थियों के लिए नवजीवन का प्रवेश द्वार है जो कुछ शिक्षा और ज्ञान आपने यहां विश्वविद्यालय में अर्जित किया है इसका व्यावहारिक उपयोग आप राष्ट्र और समाज के हित में करने के लिए तैयार हुए हैं।

 

उन्होंने कहा कि यह विश्वविद्यालय पंडित दीनदयाल उपाध्याय के नाम पर स्थापित है जो की एक महान चिंतक ही नहीं थे बल्कि उन्होंने भारतीय शिक्षा पर भी महती दृष्टि हमें दी है। उन्होंने अपनी पुस्तक ‘राष्ट्र चिंतन’ में मानवीय सरोकारों को सर्वोच्च प्राथमिकता देते हुए राष्ट्रीय समाज के लिए अपना सर्वस्व अर्पित करने की बात कही है। पंडित दीनदयाल उपाध्याय शिक्षा को समाज की जननी मानते थे।

 

उन्होंने कहा कि शिक्षा ज्ञान का स्थानांतरण है जो एक पीढ़ी से दूसरी और फिर तीसरी और इसी तरह आगे यह स्थानांतरित होती रहती है। इसी से समाज में परिष्कार होता है। शिक्षा व्यक्ति को गढ़ती है। आदर्शमय जीवन जीने के लिए प्रेरित करती है। उन्होंने कहा कि कर्म क्षेत्र में प्रवृत्त होना तथा आलस्य को त्याग देना विद्यार्थी जीवन के प्रमुख गुण है।

 

उन्होंने कहा कि पंडित मदन मोहन मालवीय जी का कहना था कि शिक्षा मानव जीवन के सर्वांगीण विकास का सबसे बड़ा साधन है। उनका कहना था कि शिक्षा वह है जो विद्यार्थियों की शारीरिक, बौद्धिक तथा भावनात्मक शक्तियों को परिपुष्ट और विकसित करें। उन्होंने कहा कि हमारी नई शिक्षा नीति का मूल भी यही है इसमें शिक्षा को इस तरह से बनाए जाने की बात कही गई है कि जिससे विद्यार्थी रोजगार पाने के योग्य नहीं बल्कि रोजगार देने में समर्थ बन सके। उन्होंने कहा कि शिक्षा से चरित्र निर्माण ही नहीं होता बल्कि यह विद्यार्थी के सामाजिक और आर्थिक परिवर्तन में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

 

उन्होंने कहा कि पंडित दीनदयाल उपाध्याय शेखावाटी विश्वविद्यालय शेखावाटी क्षेत्र की उस पावन धरा पर बना है जो सदैव त्याग,बलिदान और परोपकार की भावना से परिपूर्ण रही है।

 

शेखावाटी ने भारतीय सेना को सर्वाधिक सैनिक दिए हैं तथा यहां पग-पग पर शहीदों की गाथाएं गूंजती हैं। देश की अर्थव्यवस्था में भी प्रमुख स्थान यहीं के मारवाड़ी सेठों का रहा है। उन्होंने कहा कि भामाशाहों की यह धरती जीवन के उदात मूल्यों से जुड़ी है।

 

उन्होंने कहा की विद्यार्थी हमेशा सकारात्मक सोच के साथ आगे बढ़ते रहें, बड़े सपने देखे, कड़ी मेहनत करें और कभी भी सीखना बंद ना करें।

 

उन्होंने कहा कि विकसित भारत की संकल्पना युवाओं पर ही निर्भर है इसलिए मैं स्वामी विवेकानंद के उठो जागो और तब तक मत रुको जब तक मंजिल प्राप्त न हो जाए के माध्यम से कहना चाहता हूं की तब तक अपने लक्ष्य के प्रति लग रहे जब तक की सफल न हो जाए।

 

उन्होंने कहा कि मुझे यह जानकर प्रसन्नता हुई की इस विश्वविद्यालय में नई शिक्षा नीति के तहत कई पाठ्यक्रमो और डिप्लोमा की पहल हुई है। उन्होंने कहा कि यह विश्वविद्यालय विशिष्ट सामाजिक,आर्थिक समस्याओं के समाधान के लिए अनुसंधान क्षेत्र को भी प्राथमिकता दें साथ ही स्थानीय संस्कृति, अतीत से जुड़ी वीर गाथाओं, राष्ट्र की अर्थव्यवस्था में यहां के व्यवसाययों के योगदान आदि विषयों के आलेखों में भविष्य को दिशा प्रदान करने वाले शोध यहां हो।

 

उन्होंने कहा कि यह दौर स्वस्थ प्रतिस्पर्धा का है हमें शिक्षा जगत और उद्योग के बीच की दूरी को बांटने की जरूरत है। आत्मनिर्भर भारत को तभी हम सही मायने में साकार कर सकेंगे जब उद्योगों को विश्वविद्यालय से अच्छा मानव संसाधन मिले और विद्यार्थियों को व्यावसायिक कौशल। उन्होंने शिक्षकों को प्रेरित करते हुए कहा कि वे हमारे युवाओं को नियमित शिक्षा के साथ-साथ उनमें कौशल को बढ़ाकर स्वरोजगार वह प्रतिस्पर्धात्मक रूप से आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए तैयार करें। उन्होंने कहा कि हमारे शिक्षण संस्थान अनुसंधान प्रौद्योगिकी के विकास, नवाचार और उद्यमिता की भावना को पोषित करने का भी माध्यम बने।

 

समारोह में यूनिवर्सिटी के वॉइस चांसलर प्रो.(डॉ.) अनिल कुमार राय, सीकर पुलिस महानिरीक्षक सीकर रेंज सत्येंद्र सिंह, जिला कलक्टर कमर उल जमान चौधरी, पुलिस अधीक्षक भुवन भूषण यादव, सहित यूनिवर्सिटी का एडमिनिस्ट्रेशन प्रशासन, प्रोफेसर व स्टूडेंट्स मौजूद रहें।

रिपोर्ट :- बी एल सरोज

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