Explainer : हर चरण की वोटिंग के बाद कहां और कैसे सुरक्षा में रखी जाती हैं EVM, ताकि नहीं हो गड़बड़ी

देश में 543 सीटों के लिए हो रहे लोकसभा चुनावों में पहले तीन चरण की वोटिंग हो चुकी है. तीन चरणों में 283 सीटों का भाग्य ईवीएम यानि इलैक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन में कैद हो चुका है. क्या आपने कभी सोचा कि जिन ईवीएम में आप बटन दबाकर वोट देते हैं, वो वोटिंग खत्म हो जाने के बाद कहां जाती हैं. कहां रखी जाती हैं. इनकी सुरक्षा कैसे हो जाती है. क्या ज्यादा गर्मी या नमी से इनमें कैद वोटों के डाटा पर कोई असर पड़ सकता है. वोटिंग हो जाने के बाद ईवीएम को सीलबंद करके स्ट्रांग रूम तक पहुंचाते हैं और वोट काउंटिंग तक ये वहीं सुरक्षा में रहती हैं.

जानते हैं कि कि पोलिंग बूथ से स्ट्रांग रूम (Strong Room) तक ईवीएम कैसे पहुंचती हैं और कैसे होती है उनकी सुरक्षा. मतदान ख़त्म होते ही पोलिंग बूथ (Pooling Booth) से तुरंत ईवीएम स्ट्रांग रूम नहीं भेजी जातीं.  वोटिंग का समय खत्म होने के बाद प्रीसाइडिंग ऑफिसर ईवीएम में वोटों के रिकॉर्ड का परीक्षण करता है. सभी प्रत्याशियों के पोलिंग एजेंट को एक सत्यापित कॉपी दी जाती है.

इसके बाद ईवीएम को सील कर दिया जाता है. प्रत्याशियों या उनके पोलिंग एजेंट वोटिंग मशीन सील होने के बाद ऊपर सील के साथ लगे कागज पर अपने हस्ताक्षर करते हैं. प्रत्याशी या उनके प्रतिनिधि मतदान केंद्र से स्ट्रांग रूम ईवीएम के साथ ही जाते हैं.

रिजर्व ईवीएम भी इस्तेमाल की गई ईवीएम के साथ ही स्ट्रांग रूम में आनी चाहिए. जब सारी ईवीएम आ जाती हैं. तब स्ट्रांग रूम सील कर दिया जाता है. प्रत्याशियों के प्रतिनिधि को अपनी तरफ़ से भी सील लगाने की अनुमति होती है.

कैसा होता है स्ट्रांग रूम का सुरक्षा घेरा
स्ट्रांग रूम का मतलब है वो कमरा, जहां ईवीएम मशीनों को पोलिंग बूथ से लाकर रखा जाता है. उसकी सुरक्षा अचूक होती है. यहां हर कोई नहीं पहुंच सकता. इसकी सुरक्षा के लिए चुनाव आयोग पूरी तरह से चाक-चौबंद रहता है. स्ट्रांग रूम की सुरक्षा चुनाव आयोग तीन स्तर पर करता है.

इसकी अंदरूनी सुरक्षा का घेरा केंद्रीय अर्ध सैनिक बलों के जरिए बनाया जाता है. इसके अंदर एक और सुरक्षा होती है, जो स्ट्रांग रूम के भीतर होती है. ये केंद्रीय बल के जरिए की जाती है. सबसे बाहरी सुरक्षा घेरा राज्य पुलिस बलों के हाथों में होता है. दिल्ली में ये काम दिल्ली पुलिस का है.

ईवीएम रखने के बाद स्ट्रांग रूम का क्या होता है
ईवीएम रखने के बाद स्ट्रांग रूम को सील लगाकर बंद कर दिया जाता है, इस वक्त राजनीतिक पार्टियों के प्रतिनिधि मौजूद रहते हैं. ये प्रतिनिधि अपनी तरफ़ से भी सील लगा सकते हैं.

स्ट्रांग रूम इस तरह से बना होता है कि इसमें केवल एक ओर से एंट्री होती है. अगर किसी स्ट्रांग रूम की कोई दूसरी एंट्री है, तो उसके लिए सुनिश्चित करना होता है कि इसके जरिए कोई स्ट्रांग रूम में दाखिल नहीं हो सके.

स्ट्रांग रूम में किसी की एंट्री कैसे दर्ज होती है
स्ट्रांग रूम के एंट्री पाइंट पर सीसीटीवी कैमरा होता है. जिससे हर आने जाने वाले की तस्वीर इस पर रिकॉर्ड होती रहती है. अगर कोई संबंधित अधिकारी स्ट्रांग रूम में जाना चाहे तो उसे सुरक्षा बलों को दी गई लॉग बुक पर आने का टाइम, अवधि और नाम की एंट्री करनी होती है. ये जरूरी होती है. अगर काउंटिंग हॉल स्ट्रांग रूम के पास है तो दोनों के बीच एक मज़बूत घेरा होता है ताकि कोई किसी भी तरह स्ट्रांग रूम तक नहीं पहुंच सके.

क्या प्रत्याशी स्ट्रांग रूम की देखरेख कर सकता है
प्रत्याशियों को भी स्ट्रांग रूम की देखरेख की अनुमति होती है. एक बार स्ट्रांग रूम सील होने के बाद काउंटिंग के दिन सुबह ही खोला जाता है. अगर विशेष परिस्थिति में स्ट्रांग रूम खोला जा रहा है तो यह प्रत्याशियों की मौजूदगी में ही संभव होगा.

स्ट्रांग रूम से काउंटिंग हॉल तक ईवीएम कैसे जाती हैं
इन सारे मानकों का पालन हर हाल में करना होता है. अगर काउंटिंग हॉल और स्ट्रांग रूम के बीच ज़्यादा दूरी है तो दोनों के बीच बैरकेडिंग होनी चाहिए. इसी के बीच से ही ईवीएम को काउंटिंग हॉल तक ले जाया जाएगा.

वोटों की गिनती के दिन अतिरिक्त सीसीटीवी कैमरे लगाए जा सकते हैं. स्ट्रांग रूम से काउंटिंग हॉल तक ईवीएम ले जाने को रिकॉर्ड किया जाएगा. ताकि कोई गड़बड़ नहीं हो सके. स्ट्रांग रूम और काउंटिंग हॉल की लोकेशन को लेकर भी कई मानक हैं.

वोटिंग के पहले ईवीएम कहां होती है?
एक ज़िले में उपलब्ध सभी ईवीएम डिस्ट्रिक्ट इलेक्टोरल ऑफिसर (डीईओ) की निगरानी में गोदाम में रखी होती हैं. गोदाम में डबल लॉक सिस्टम काम करता है. गोदाम की सुरक्षा में पुलिस बल हमेशा तैनात रहते हैं. इसके साथ ही सीसीटीवी सर्विलांस भी रहता है.

वोटिंग से पहले गोदाम से एक भी ईवीएम चुनाव आयोग के आदेश के बिना बाहर नहीं जा सकती है. चुनाव के वक़्त ईवीएम की जांच पहले इंजीनियर करते हैं. ये जांच राजनीतिक पार्टियों के प्रतिनिधियों की मौजूदगी में होती है.

किस तरह आवंटित होती हैं ईवीएम
वोटिंग की तारीख़ क़रीब आने के बाद ईवीएम बिना किसी क्रम के आवंटित की जाती है. इस वक़्त अगर राजनीतिक पार्टी के प्रतिनिधि मौजूद नहीं होते हैं तो आवंटित ईवीएम और वीवीपीएटी की लिस्ट राजनीतिक पार्टियों के कार्यालयों को सौंप दी जाती है. इसके बाद रिटर्निंग ऑफिसर की ज़िम्मेदारी स्टोर रूम और चिह्नित स्ट्रांग रूम की होती है.

अलग-अलग मतदान केंद्रों पर ईवीएम का आवंटन पार्टी प्रतिनिधियों की मौजूदगी में होता है. सारी ईवीएम मशीनों के सीरियल नंबर को पार्टियों से साझा किया जाता है. मतदान शुरू होने से पहले ईवीएम के नंबर का मिलान राजनीतिक पार्टियों के एजेंटों की मौजूदगी में किया जाता है.

जब सारी मशीनें बैलेट और कैंडिडेट्स के नामों और चुनाव चिह्नों से लैस हो जाती हैं तो स्ट्रांग रूम को पार्टी प्रतिनिधियों की मौजूदगी में सील कर दिया जाता है. एक बार स्ट्रांग रूम बंद होने के बाद तभी खुलता है जब मतदान केंद्रों पर ईवीएम पहुंचाई जाती है.

रिजर्व ईवीएम क्यों साथ में जाती हैं
जब ईवीएम मतदान केंद्र के लिए रवाना की जाती है तो सभी राजनीतिक पार्टियों को सूचित किया जाता है. उनके साथ टाइम और तारीख़ को साझा किया जाता है. कुछ अतिरिक्त ईवीएम भी रखी जाती हैं, जिन्हें रिजर्व ईवीएम कहा जाता है, जो कोई तकनीकी ख़राबी आने की सूरत में बदली जा सकती हैं.

कितने दिनों तक डाटा रहता है सुरक्षित 
ईवीएम में जब वोट डाले जाते हैं तो वोटों का डाटा उसकी कंट्रोल यूनिट में सुरक्षित हो जाता है. वैसे तो एक ईवीएम की उम्र 15 साल होती है. इसके बाद उसको रिटायर कर दिया जाता है. लेकिन अगर डाटा की बात करें तो इसमें डाटा को ताउम्र सुरक्षित रखा जा सकता है. इसका डाटा तभी हटाया जाता है जब इसे डिलीट करे नई वोटिंग के लिए तैयार करना होता है.

क्या स्ट्रांग रूम में गर्मी या नमी का असर ईवीएम पर होता है
स्ट्रांग रूम वैसे तो ऐसा होता है कि उसमें ना तो गर्मी का असर हो और ना ही नमी. अगर ये किसी तरह हो भी जाएं तो हर ईवीएम को जिस तरह अलग अलग सूटकेसों में बंद किया जाता है. उससे ये किसी भी तरह के मौसम, तापमान और नमी के बाहरी असर से महफूज होती हैं.

क्या वीपैट को भी साथ ही रखा जाता है
हां वीपैट मशीनों को भी सीलबंद करके संबंधित ईवीएम यूनिट्स के साथ ही रखा जाता है. हर वीपैट को एक सीरियल नंबर दिया जाता है, जिससे पता लगता है कि वो किस ईवीएम के साथ जुड़ी हैं. साथ ही वीपैट से निकलने वाली पर्चियों को भी एक बॉक्स में सीलबंद करके सुरक्षित ही स्ट्रांग रूम में ले जाकर रखते हैं.

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