CAA पर विवाद के बीच जानिए कैसे इजरायल दुनियाभर के यहुदियों को नागरिकता देता है

भारत में नागरिकता संशोधन कानून की अधिसूचना जारी होने के बाद अब ये कानून बनकर हरकत में आ चुका है. इसे लेकर देश में पहले भी हंगामा बरप चुका है और फिर विवाद शुरू हो गया है. क्या आपको मालूम है कि इजरायल का नागरिकता कानून बहुत पहले से ऐसा है, जो धर्म आधारित है, ये दुनियाभर के यहुदियों को अपने देश में तुरंत नागरिकता देता है लेकिन दूसरे धर्मों के साथ ऐसा नहीं करता.

क्या है इजराइल का नागरिकता कानून
इजराइल की स्थापना 1948 में हुई. अरब-इजराइल युद्ध के बाद इजराइल के रूप में नए देश का जन्म हुआ. उससे पहले ये इलाका मेंडेटरी फिलीस्तीन कहलाता था. जब इजराइल एक देश के रूप में सामने आया तो उसकी परिकल्पना यही थी कि ये दुनियाभर के यहूदियों का देश होगा.

इस देश को बनाने के लिए यहूदियों ने इसी आधार पर संघर्ष किया था, लिहाजा 1950 में जब उनकी संसद में  नागरिकता कानून का प्रारूप पेश हुआ तो इस आधार को ध्यान में रखा गया कि ये राष्ट्र यहूदियों के लिए है. भौगोलिक तौर पर इजराइल में मुस्लिम अरब भी बड़ी संख्या में रहते हैं लेकिन उसका नागरिकता कानून हमेशा ही विवादों में रहा है.

इजरायल में दूसरे धर्म के लोगों के लिए नागरिकता पाना मुश्किल

मोटे तौर पर आप कह सकते हैं कि इजराइल में यहूदी धर्म के अलावा अन्य धर्म के लोगों के लिए ना केवल नागरिकता हासिल करना मुश्किल है तो रहना भी. इस समय इजराइल में करीब 74.2 फीसदी आबादी यहूदियों की है तो 20.9 फीसदी अरब रहते हैं. 4.8 प्रतिशत अन्य धर्मों के लोग. अरब आबादी में बड़ी संख्या मुस्लिमों की है तो कुछ द्रुज और अन्य छोटे-मोटे धर्मों की.

इजराइल में किसे मिलती है नागरिकता
तथ्य ये है कि 1948 में इजराइल के बनने के बाद से वहां बाहर से आए यहूदियों को छोड़कर किसी अन्य धर्म के लोगों को नागरिकता नहीं दी गई है. बल्कि अरबों के सामने ये स्थिति पैदा की गई कि वो इजराइल छोड़ चले जाएं

इजराइल का नागरिकता कानून कहता है कि हर यहूदी का इजराइल की नागरिकता पर अधिकार है. चाहे वो किसी भी देश में क्यों ही पैदा नहीं हुआ हो. उसका हमेशा इजराइल में स्वागत है. इजराइल को बसाने में अमेरिकी यहुदियों के साथ रूसी यहूदियों का खास स्थान रहा है.

क्या हैं नागरिकता के चार आधार 
इजराइल में नागरिकता कानून चार आधार पर काम करता है.

– आवेदन के समय आवेदक को इज़राइल में शारीरिक रूप से उपस्थित होना चाहिए.
– आवेदक को आवेदन से पहले की पांच साल की अवधि के भीतर कम से कम तीन साल तक इज़राइल में रहना चाहिए.
– आवेदक को स्थायी निवास के लिए पात्र होना चाहिए.
– आवेदक ने इज़राइल में अपना निवास स्थापित किया होगा या स्थापित करने का इरादा रखता होगा.
– आवेदक के पास हिब्रू भाषा में बुनियादी दक्षता होनी चाहिए.
– आवेदक को अपनी पिछली नागरिकता छोड़ देनी चाहिए या यह प्रदर्शित करना चाहिए कि इजरायली नागरिकता प्राप्त करने पर उनके पास अब विदेशी नागरिकता नहीं रहेगी.
हालांकि इस कानून में जोर इस बात पर भी है कि न्यूट्रलिटी के तहत जो नागरिकता लेना चाहे वो तीन साल से इजरायल में स्थायी तौर पर रह रहा हो, जो अपने आपमें बहुत जटिल और कठिन प्रक्रिया है.

देश में रहने वाले अरबों को खदेड़ा गया
इजराइल में ये सिटीजनशिप एक्ट 1952 में लागू हो गया. इसके बाद इजराइल पर आरोप लगने लगा कि वो जानबूझकर अपनी पश्चिमी इलाके की बाहरी बस्तियों पर बसे फिलिस्तिनियों को खदेड़ रहा है ताकि वो वहां से भाग जाएं. ये स्थिति इजराइल के अंदर रहने वाले मुस्लिम अरबों की भी हुई.

अरब और मुस्लिम देशों ने लगातार आरोप लगाया कि जो मुस्लिम अरब इजराइल के अंदर लंबे समय से रह रहे थे, उन्हें प्रताड़ित करके भागने पर मजबूर कर दिया गया. ये अरब लोग आसपास के दूसरे देशों में भाग गए.

नौकरियों, राजनीति और व्यापार में अरबों से दूसरे दर्जे का व्यवहार
वजह साफ थी कि वाजिब नागरिकता के मामले में इजराइल अरबों की संख्या को बहुत सीमित कर देना चाहता था. उन्होंने ऐसा किया भी. इजराइल में इसे लेकर आज भी तनातनी की स्थिति बनी रहती है. नौकरियों, व्यापार से लेकर संसद तक में ये स्थिति नजर आती है. अरब जनसंख्या को वहां सेना और प्रशासन में शामिल होने का अधिकार नहीं है.

हालांकि 1999 में इजराइल के सुप्रीम कोर्ट ने एक बड़ा फैसला दिया कि अगर किसी यहूदी की संतानें किसी और धर्म का पालन कर रही हैं तो वो इजराइल में अप्रवास के अधिकारी नहीं होंगे. उन्हें यहूदी नहीं माना जाएगा.

कितनी बार हो चुका है सिटीजनशिप एक्ट में बदलाव 
इजराइल अपने सिटीजनशिप एक्ट में 13 बार बदलाव कर चुका है लेकिन ये साफ है कि वहां बाहर के देशों से आए अन्य धर्मों के लोग नागरिकता नहीं पा सकते. इसका असर कई बार इजराइल में अतंरजातीय शादियों पर पड़ता है.

कई और देशों में नागरिकता देने की विवादास्पद स्थिति
हालांकि नागरिकता को लेकर कई और देशों के कानून भी विवादास्पद और कड़े रहे हैं. जापान यूं तो सभी लोगों के लिए अपने दरवाजे खोलकर रखता है. वहां बाहरी देशों से अलग अलग धर्मों के लोगों को तय समय और औपचारिकताएं पूरी करने के बाद नागरिकता हासिल हो जाती हैं लेकिन अप्रत्यक्ष तौर पर मुस्लिमों के लिए उसके दरवाजे बंद रहते हैं.

वहां मुस्लिमों की आबादी 9000 से 10,000 है, वो भी ऐसे मुस्लिम हैं जो इंडोनेशिया से बहुत समय पहले जापान आ गए थे.

चीन भी उईगर मुस्लिमों को लेकर पिछले काफी समय से कड़ाई दिखाता रहा है. हालांकि चीन के नागरिकता कानून काफी कड़े हैं. आमतौर पर चीन शायद ही विदेशियों को नागरिकता देता है. वहां बड़े पैमाने पर ऐसे लोग रहते हैं, जो परमिट आधार पर रहते हैं. उनका परमिट हर साल रिन्यू होता है. यहां तक बहुत से विदेशियों ने चीन में चीनी लड़कियों या लड़कों से शादी कर ली है लेकिन इसके बाद उन्हें नागरिकता नहीं मिल पाती, उन्हें परमिट पर ही रहना होता है.

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